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तीर्थंकर

जैन धर्म शाश्वत है ,अनादि-निधन है; अर्थात परंपरा, निरंतरता की अपेक्षा से जैन धर्म भूतकाल में भी था, वर्तमान काल में भी है और भविष्य काल में भी रहेगा। जैन परंपरा सर्वाधिक सम्मान अगर किसी को देती है तो वो हैं अरिहंत परमात्मा जिन्हे हम जिनेन्द्र भगवंत या तीर्थंकर भगवंत भी कहते हैं ।

तीर्थंकर भगवंत धर्म तीर्थ की स्थापना करते हैं सृष्टि के सभी जीवों को आत्मा हित का मार्ग बतलाते हैं वे सर्वज्ञ सर्वदर्शी यानी तीनो कालों को एक साथ जानते हैं जिस मार्ग पर चलकर उन्होंने अपनी आत्मा का कल्याण किया, केवलज्ञान को पाया वही मार्ग वे जीव मात्र को बताते हैं ।

मंत्रों के राजा नमस्कार महामंत्र और यंत्रों के राजा सिद्धचक्र यंत्र में प्रथम स्थान श्री अरिहंत यानी तीर्थंकर भगवंत को दिया गया है । ऐसे परम उपकारी, परम कृपालु ,सर्वज्ञ, सर्वदर्शी , धर्म तीर्थ की स्थापना करने वाले तीर्थंकर भगवंतों के चरित्र को गुरु मुख से सुनें, खूब खूब अनुमोदना करें,उसे अपने जीवन में उतारने का प्रयास करें और अपने कर्म खपाये।

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भक्ति

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